09-06-69 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन

“सुस्ती का मीठा रूप – आलस्य” 

सभी व्यक्त में होते अव्यक्त स्थिति में हो? अव्यक्त स्थिति किसको कहते हैं, उसकी पहचान है? पहले है अव्यक्त स्थिति की पहचान और पहचान के बाद फिर है परख तो इन दोनों बातों का ज्ञान है? अव्यक्त स्थिति किसको कहते हैं? (व्यक्त का भान न रहे) व्यक्त में कार्य करते हुए भी व्यक्त का भान कैसे नहीं रहेगा? व्यक्त में होते हुए अव्यक्त स्थिति रहे, यह कितना अनुभव होता है, आज यह सभी से पूछना है! अव्यक्त स्थिति में ज्यादा से ज्यादा कितना समय रहते हो? ज्यादा में ज्यादा कितना समय होना चाहिए, मालूम है? (आठ घंटा) सम्पूर्ण स्टेज के हिसाब से तो आठ घंटा भी कम से कम है। आप के वर्तमाँन पुरुषार्थ के हिसाब से आठ घंटा ज्यादा है? (कोई ने भी हाथ नहीं उठाया) अच्छा। जो ६ घंटे तक पहुँचे है वह हाथ उठाये। (कोई नहीं उठाते है।) अच्छा 4 घंटे तक जो पहुँचे है वह हाथ उठाये (कोई ने 4 घंटे में कोई ने 2 घंटे में हाथ उठाया) इस रिजल्ट के हिसाब से कितना समय पुरुषार्थ का चाहिए? कोर्स भी पूरा हो गया। रिवाइज कोर्स भी हो रहा है फिर भी मैजारिटी की रिजल्ट इसका क्या कारण है? सभी पुरुषार्थ भी करते हो, उमंग भी है, लक्ष्य भी है फिर भी क्यों नहीं होता है? (अटेन्शन कम है) किस बात का अटेन्शन कम है? यह तो अटेन्शन सभी रखते हैं कि लायक बने, नज- दीक आये फिर भी मुख्य कौन सा अटेन्शन कम है, जिस कारण अव्यक्त स्थिति कम रहती है? सभी पुरुषार्थी ही यहाँ बैठे हो। ऐसा कोई होगा जो कहे मैं पुरुषार्थी नहीं हूँ। पुरुषार्थी होते हुए भी कमी क्यों? क्या कारण है? अन्तर्मुख रहना चाहते हुए भी क्यों नहीं रह सकते हो? बाहरमुखता में भी क्यों आ जाते हो? ज्ञानी तू आत्मा भी तो सभी बने हैं, ज्ञानी तू आत्मा, समझदार बनते हुए फिर बेसमझ क्यों बन जाते हो। समझ तो मिली है। समझ का कोर्स भी पूरा हो चूका है। कोर्स पूरा हुआ गोया समझदार बन ही गये। फिर भी बेसमझ क्यों बनते हो? मुख्य कारण यह देखा जाता है -कोई-कोई में अलबेलापन आ गया है, जिसको सुस्ती कहते हैं। सुस्ती का मीठा रूप है आलस्य। आलस्य भी कई प्रकार का होता है। तो मैजारिटी में किस न किस रूप में आलस्य और अलबेलापन आ गया है। इच्छा भी है, पुरुषार्थ भी है लेकिन अलबेलापन होने कारण जिस तरह से पुरुषार्थ करना चाहिए वह नहीं कर पाते हैं। बुद्धि में ज्यादा ज्ञान आ जाता है तो उससे फिर ज्यादा अलबेलापन हो जाता है। जो अपने को कम समझदार समझते हैं वह फिर भी तीव्र पुरुषार्थ कर रहे हैं। लेकिन जो अपने को ज्यादा समझदार समझते हैं, वह ज्यादा अलबेलेपन में आ गये हैं। जैसे पहले-पहले पुरुषार्थ की तड़पन थी। ऐसा बन कर दिखायेंगे। यह करके दिखायेंगे। अभी वह तड़पन खत्म हो गई है। तृप्ति हो गई है। अपने आप से तृप्त हो गये हैं। ज्ञान तो समझ लिया, सर्विस तो कर ही रहे हैं। चल ही रहे हैं, यह तृप्त आत्मा इस रूप से नहीं बनना है। पुरुषार्थ में तड़प होनी चाहिए। जैसे बांधेलियाँ तड़फती हैं तो पुरुषार्थ भी तीव्र करती हैं। और जो बांधेली नहीं, वह तृप्त होती हैं तो अलबेले हो जाते हैं। ऐसी रिजल्ट मेजा- रिटी पुरुषार्थियों की देखने में आती है। हमेशा समझो कि हम नम्बरवन पुरुषार्थी बन रहे हैं। बन नहीं गये हैं। तीनों कालों का ज्ञान बुद्धि में आने से अपने को ज्यादा समझदार समझते हैं। पहले भी सुनाया था ना - जहाँ बालक बनना चाहिए वहाँ मालिक बन जाते हो, जहाँ मालिक बनना चाहिए वहाँ बालक बन जाते हो। तो अभी बच्चे रूप का मीठा-मीठा पुरुषार्थ तो कर रहे हो। राज्य के अधिकारी तो बन गये। तिलक भी आ गया लेकिन यह ढीला और मीठा पुरुषार्थ अभी नहीं चल सकेगा। जितना शक्तिरूप में स्थित होंगे तो पुरुषार्थ भी शक्तिशाली होगा। अभी पुरु- षार्थ शक्तिशाली नहीं है। ढीला-ढीला है। पुरुषार्थी तो सभी हैं लेकिन पुरुषार्थ शक्तिशाली जो होना चाहिए वह शक्ति पुरुषार्थ में नहीं भरी है। सवेरे उठते ही पुरुषार्थ में शक्ति भरने की कोई न कोई प्याइन्ट सामने रखो। अमृतवेले जैसे रूह-रूहान करते हो वैसे ही अपने पुरुषार्थ को शक्तिशाली बनाने के लिए भी कोई न कोई प्याइन्ट विशेष रूप से बुद्धि में याद रखो। अभी विशेष पुरुषार्थ करने की आवश्यकता है। साधारण पुरुषार्थ करने के दिन अभी बीत रहे हैं। जैसे विशेष फंक्शन आदि के प्रोग्राम रखते हो ना वैसे अब यही समझना है कि समय थोड़ा है। उसमें विशेष पुरुषार्थ का प्रोग्राम रखना है। यह विशेष पुरुषार्थ करने का लक्ष्य रख आगे बढ़ना है। अगर ऐसी ढीली रिजल्ट में रहेंगे तो जो आने वाली परीक्षायें हैं उनकी रिजल्ट क्या रहेगी? परीक्षायें कड़ी आने वाली हैं। उसका सामना करने के लिए पुरुषार्थ भी कड़ा चाहिए। अगर पुरु- षार्थ साधारण, परीक्षा कड़ी तो रिजल्ट क्या होगी?

अच्छा आज तो गोपों से मुलाकात करते हैं। अपने पुरुषार्थ में सन्तुष्ट हो? चल तो रहे हो लेकिन कितनी परसेन्टेज में? जो समझते हैं हम 75 श्रीमत पर चल रहे हैं वह हाथ उठाये। (कइयों ने हाथ उठाया) अच्छा मुख्य श्रीमत क्या है? मुख्य श्रीमत यही है कि ज्यादा से ज्यादा समय याद की यात्रा में रहना। वयोंकि इस याद की यात्रा से ही पवित्रता, दैवीगुण और सर्विस की सफलता भी होगी। जो 75 श्रीमत पर चलते हैं उन्हों का याद का चार्ट कितना है? याद का चार्ट भी 75 होना चाहिए। इसको कहेंगे पूरी-पूरी श्रीमत पर चलने वाले। आज खास गोपों को आगे किया है। गोपियों को पीछे मंगाया है क्योंकि जब भी मिलन की कोई बात होती है तो गोपियों जल्दी आ जाती हैं। गोप देखते-देखते रह जाते हैं। गोपों को जिम्मेवारी भी देनी है। यूँ तो दी हुई है। जैसे आप लोगों के चित्र में दिखाया है ना कि द्वापर के बाद ताज उतर जाते हैं। तो यह जिम्मेवारी का ताज भी दिया हुआ तो है लेकिन कभी-कभी जानबूझ कर भी उतार देते हैं और माया भी उतार देती है। सतयुग में तो ताज इतना हल्का होता है जो मालूम भी नहीं पड़ता है कि कुछ बोझ सिर पर है। सतयुग की सीन सीनरियॉ सामने आती हैं कि नहीं? सतयुग के नजारे स्वयं ही सामने आते हैं या लाते हो? जितना-जितना आगे बढ़ेंगे तो न चाहते हुए भी सतयुगी नजारे स्वयं ही सामने आयेंगे। लाने की भी जरूरत नहीं। जितना-जितना नजदीक होते जायेंगे, उतना-उतना नजारे भी नजदीक होते जायेंगे। सतयुग में चलना है और खेल-पाल करना है। यह तो निश्चित है ही आज जो भी सभी बैठे हैं उनमें से कौन समझता है कि हम श्रीकृष्ण के साथ पहले जन्म में आयेंगे? उनके फैमिली में आयेंगे वा सखी सखा बनेंगे वा तो स्कूल के साथी बनेंगे? जो समझते हैं तीनों में से कोई न कोई जरूर बनेंगे ऐसे निश्चय बुद्धि कौन है? (सभी ने हाथ उठाया) नजदीक आने वालों की संगमयुग में निशानी क्या होगी? यहाँ कौन अपने को नजदीक समझते हैं? यज्ञ सर्विस वा जो बापदादा का कार्य है उसमें जो नजदीक होगा वही वहाँ खेल-पाल आदि में नजदीक होंगे। यज्ञ की जिम्मेवारी वा बापदादा के कार्य की जिम्मेवारी के नजदीक जितना-जितना होंगे उतना वहाँ भी नजदीक होंगे। नजदीक होने की परख कैसे होगी? हरेक को अपने आप से पूछना चाहिए-जितनी बुद्धि, जितना तन-मन-धन और जितना समय लौकिक जिम्मेवारियों में देते हो उतना ही इस तरफ देते हो? इस तरफ ज्यादा देना चाहिए। अगर ज्यादा नहीं तो उसका वजन एक जैसा है? अगर दोनों तरफ का एक जितना है तो भी नजदीक गिना जायेगा। इस हिसाब से अपने को परखना है। अभी तक रिजल्ट में लौकिक जिम्मेवारियों का बोझ ज्यादा देखने में आता है। खास मुख्य गोपों को यह बातें जरूर ध्यान में रखनी चाहिए कि आज का दिन जो बीता कितना समय लौकिक जिम्मेवारी तरफ दिया और कितना समय अलौकिक वा पारलौकिक जिम्मेवारी तरफ दिया? कितने मददगार बने? यह चेकिंग करते रहेंगे तो पता पड़ेगा कि कौन सा तरफ खाली है। सभी प्रकार की परिस्थितियों में रहते हुए भी कम से कम दोनों तरफ एक जितना जरूर होना चाहिए। कम नहीं। उस तरफ कम हुआ तो हर्जा नहीं। इस तरफ कम नहीं होना चाहिए। तो फिर लौकिक जिम्मेवारी के कमी को भी ठीक कर सकेंगे। परमार्थ से व्यवहार भी सिद्ध हो जाता है। कोई-कोई कहते हैं पहले व्यवहार को ठीक कर परमार्थ में लगें। यह ठीक नहीं है। तो यह खास ध्यान रखना है। खास गोपों में बापदादा की उम्मीद है जो गोप ही पूरी कर सकते हैं। गोपियों से नहीं हो सकती। वह कौन सी उम्मीद है? पाण्डवों का मुख्य कार्य यही है जो कई प्रकार के लोग और कई प्रकार की परीक्षायें समय प्रति समय आने वाली भी हैं और आती भी रहती हैं तो परीक्षा और लोगों की परख यह विशेष गोपों का काम है। क्योंकि पाण्डवों को शक्तियों की रखवाली करने का मुख्य कार्य है। शक्तियों का काम है तीर लगाना लेकिन हर प्रकार की परीक्षा और लोगों को परखना और शक्तियों की रखवाली करना पाण्डवों का काम है। इतनी जिम्मेवारी उठा सकते हो? कि शक्तियों के रखवाली की आप को आवश्यकता है? कहाँ-कहाँ देखने में आता है पाण्डव अपनी रखवाली की औरों से उम्मीद रखते हैं लेकिन पाण्डवों को अपनी रखवाली के साथ चारों ओर की रखवाली करनी है। बेहद में दृष्टि होनी चाहिए न कि हद में। अगर अपनी ही रखवाली नहीं करेंगे तो फिर औरों की मुश्किल हो जायेगी। 

अच्छा !!!